फूंक…
ईश्वर के नाम पर लड़नेवालों को निहारते
मौन-असमंजस में मैं बैठा था…
पता चला अचानक कोई और भी
बग़ल में बैठा है…
फिर आह भरके
और मुझे “ज्वाइंट” पकड़ाकर बोला –
“फूंक लो मेरी तरह, वरना नहीं जमेगा…”
ईश्वर ही था वह, शायद…
चला गया वह फिर
और मैं यह सोचता रह गया
कि पूछना था मुझे उससे
कि इस जगत के सृजन से पहले
उतना भी फूंकना आवश्यक था क्या…
परसर्ग…
“ईश्वर संसार में प्रकट होता है…”
यह वाक्य सुनकर तुरंत दौड़े
स्वयं को “ईश्वर” शब्द में ढूंढने
जब कि हम “में” परसर्ग में हैं…
चक्र…
उतना भी जीवन-चक्र नहीं हुआ है तीव्र
कि इसके घूमते कूदकर निकलने से डर लगे…
समाप्त होने से कौनसा डर
जब आरंभ होने से पहले नहीं था कोई…
कोशिका…
एक कोशिका है यह संसार
इससे बड़े संसार की,
और वह अगले की…
जैसे अपनी किसी एक कोशिका की दृष्टि में
हम हैं उससे बड़ा संसार
जिसको वह ईश्वर मानती होगी…
देवदूत…
मनुष्यों बीच यदि देवदूत भी छुपकर रह रहे हैं
तो फिर उन्हें पहचानने का एक ही उपाय है,
ऐसे जियो कि वे
स्वयं अपना परिचय आकर दें…
मुक्ति…
बिना शरीर छोड़े
मस्ती-मुक्ति में
भूत बनकर रहना
एक उत्तम कला है…
अवसर…
तुमसे मिलने का यदि दूसरा अवसर
न देने पर अड़ा रहेगा जीवन,
गिनती का मैं उलंघन कर ही लूंगा
तीसरा ही अवसर सीधे पकड़के
तुम्हारे हाथ के साथ…
निकास…
निकास का द्वार कहीं न हो
इसका तो यह भी हो सकता है अर्थ
कि तुम अनंत के अंदर हो…
योग…
लगता है जहां भाग्य बंट रहे थे
हम दोनों भी पहुंच गए वहां
और हंसकर बोले –
“दूर कोनों में पड़े हमें दो भारी भाग्य देना
जो कोई लेना नहीं चाहता,
उनका हल्का और सुखद योग करके दिखाना है!”
शुभकामना…
जियो उतना चिंतामुक्त और हल्का
मानो तुम जीकर मर चुके हो…
हां, ठीक सुना। यही है मेरा ढंग
शुभकामना देने का…
श्रद्धा…
कहां मैं भूल गया हूं डर और क्रोध को!
देखो ज़रा उन दोनों के चित्रों पर
कितनी श्रद्धा से मालाएं चढ़ी हैं…
उपाय…
सब कुछ बीत जाने से
मन न रहे दुखी
उसी का है एक सरल सा उपाय
स्वयं बीत जाना…
कठिनाई…
एक कठिनाई लाई हो तुम जीवन में।
इस युग को कोसना हो गया कठिन,
पहले जो सौंदर्य दिखता है…
गुंजाइश…
पहाड़ों के उस पार से आ रही
वह चांदी सी गुंजाइश
नहीं मैं ला सकूंगा…
यह अनुरोध उससे करो
जिसका है लौटने का इरादा…
अपेक्षा…
अपेक्षाओं का अंत ही होता है
अपेक्षा करने योग्य…
माँ…
आकाश को छूनने की
जिज्ञासा उत्पन्न हो सकने का श्रेय
धरती को जाता है…
उड़ान के स्वप्न रखने की क्षमता
उसी से प्राप्त हुई है
जिसने चलना सिखाया था…
जड़ों को भूलकर नहीं फूला जाता है कभी…
देवी-दर्शन की यात्रा में नहीं निकला जाता
बिना माँ के आशीष के…
परमानंद में विलीन समाधि-अवस्था
सर्वोत्तम लक्ष्य कभी नहीं बनती
बिना अवचेतन में पले
माँ-कोख में पाए सिद्धि-भाव के स्मरण के…
——
कवि यूक्रेनवासी हैं और हिंदी भाषा के शिक्षक हैं।