-अदालत ने कहा- सुनवाई के लिए एक निश्चित तारीख तय की जाएगी
कोलकाता : प बंगाल सरकार ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए बकाया महंगाई भत्ता (डीए) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई फिर से टल गई है। लेकिन उम्मीद के रूप में देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई के लिए एक निश्चित तारीख तय की जाएगी।
शुक्रवार को राज्य के डीए मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में थी। न्यायाधीश ऋषिकेश राय व न्यायाधीश पंकज मिथिल के डिवीजन बेंच में यह मामला आया। वहां राज्य द्वारा पहली सुनवाई की लंबी अवधि का उल्लेख किया गया।
इस दिन अदालत में राज्य की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी हाजिर थे। उन्होंने कहा-डीए देने से राज्य के करीब चार लाख कर्मचारियों पर करीब 41 हजार करोड़ रुपये का भार राज्य पर पड़ेगा। इसलिए इस मामले में लंबी सुनवाई की जरूरत है।
राज्य की दलील सुनने के बाद दोनों न्यायाधीशों के डिवीजन बेंच ने कहा-चूंकि, मामले पर लंबी अवधि तक सुनवाई की जरूरत है, इसलिए मामले की सुनवाई के लिए एक निश्चित तारीख तय की जाएगी। हालांकि, डिवीजन बेंच की तरफ से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि वह दिन या तारीख क्या होगी।
मालूम हो कि राज्य के लाखों सरकारी कर्मचारी डीए मामले पर फैसले का इंतजार कर रहे हैं। यह मामला पहली बार पिछले वर्ष 5 दिसंबर को सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में आया। बाद में सुनवाई की तारीख आगे बढ़कर 14 दिसंबर हो गई। साथ ही मामले की सुनवाई के लिए नया बेंच गठित किया गया। इसमें दो न्यायाधीश थे। इनमें न्यायाधीश ऋषिकेश राय व न्यायाधीश दीपंकर दत्त शामिल थे। लेकिन सुनवाई के दिन ही न्यायाधीश दीपंकर दत्त मामले से हट गए। इस वजह से सुनवाई नहीं हुई। उसके बाद से जितनी बार मामले की सुनवाई का दिन तय हुआ, उतनी ही बार किसी न किसी कारण से मामला आगे बढ़ गया।
गौरतलब है कि 2022 के मई महीने में कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के कर्मचारियों को 31 फीसदी डीए देने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार उस निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई। उनके तर्क के मुताबिक, अगर हाई कोर्ट के फैसले के मुताबिक डीए का भुगतान किया जाए तो करीब 41 हजार 770 करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जिसे वहन करना राज्य सरकार के लिए मुश्किल है। राज्य सरकार कर्मचारी परिसंघ (परिसंघ) के वकीलों ने दावा किया कि बकाया डीए के भुगतान से राज्य पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा। फिर, यह सच है कि डीए सरकारी कर्मचारियों का अधिकार है। उन्हें इससे वंचित नहीं किया जा सकता। ऐसे में राज्य सरकार के कर्मचारी लंबे समय से इस पर फैसले का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि सुनवाई बार-बार स्थगित की जा रही है।