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Reading: मेरी भोजपुरी कथेतर गद्य कृति “हमार गाँव” से एक अध्याय : चंद्रेश्वर
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Lahak Digital > Blog > Literature > मेरी भोजपुरी कथेतर गद्य कृति “हमार गाँव” से एक अध्याय : चंद्रेश्वर
Literature

मेरी भोजपुरी कथेतर गद्य कृति “हमार गाँव” से एक अध्याय : चंद्रेश्वर

admin
Last updated: 2023/07/09 at 3:43 PM
admin
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15 Min Read
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*जमुलाल बाबा*

हमरा गाँव में एगो ‘मिथ’ बा जेवन एहिजे के गँवई लोक में रचाइल-गढ़ाइल बा | ई ‘मिथ’ निरंतर लोक रूढ़ियन से बुनात-बुनात बहुते गझ्झिन हो के पुराकथा आ आख्यान लेखा हो गइल बा | कहे वाला लोग कहे ला कि गाँव में तिवारी लोग के तीसरिहा महाल आ दुसाध टोली के पिछुवारी पछिम अलंगे आम के घन बगइचा में एगो बाबा पूजालें | ओह बाबा के नाव जमुलाल बाबा ह | उन्हुकर नाव अगल-बगल के दू-चार गो गाँवन में फइलल बा | एह बाबा के पुजइया गाँव भर करेला | हिन्दू के कँवनो जाति के कँवनो परिवार में अगर काज-परोजन भा सुभ काज होला त सब बरहम,बाबा लोग आ देबी-देवता के संगे जमुलालो बाबा के पूजल जाला |
हमरा गाँव के पुरनिया लोग पहिले बतावत रहे कि जमुलाल बाबा जाति के दुसाध रहलन | एही से उन्हुकर चउरा ठीक दुसाध टोली के पाछा बनावल गइल बा , ओही लोग के ज़मीन में | हमरा गाँव के दुसाध लोग के पास किछु जोतो ज़मीन रहे ,जेवन ओह लोगन के परिवार बढ़ला प बँटात-बँटात धूर आ कट्ठा में बदल गइल बा | दुसाध टोली में पढ़ल-लिखल लोग आजुओ कम बा ; बाक़ी घर में नाव एक से बढ़ के एक राखेला लोग — वक़ील, जज, कलक्टर,मजिस्टेट ,इंजीनियर आ डागदर सब एह टोला में व्यक्तिवाचक संज्ञा में बदल जाला | एह तरह के नाव राखे का पाछा के मन के बुनाई-गढ़ाई समझे के परयास करे के चाहीं | एह तरह के नावकरन के पाछा ज़रूर एह लोग के सपना आ सदियन से दबावल गइल मन के इच्छा-अभिलाखा के अभिबेयक्ति बा | एही टोला के कलकतिया ह जेवन कलकत्ता में जा के फेरु गाँव प लवट आइल रहे,कुली-मज़ूरी में परदेस में मन ना लागल | हमरा ओकर एह घटना प सूरदास के पद के एगो वाक्य मन परेला –“जइसे उड़ि जहाज के पंछी पुनि जहाज पर आवे |” गाँव कलकतिया खातिर सूरदास के जहाज से कम ना रहे | ऊ कहबो करेला कि ‘मलिकार गाँव गाँवे होला | एहिजा केहू के गुज़र-बसर हो जाला | गाँव ह से डीह ह | ऊ सादी-बियाह में केहू के दुआर प जाके सफाई करेला | ऊ दिहाड़ी मज़ूर कबो ना बन सकल | ओकरा बेगारी से कँवनो परेसानी ना ह |
जे होखे, हमरा दुआर के सोझा जेहवाँ चरन बना के पहिले गरुवारी होत रहे ,ओहिजे पहिले बिसाल बर के फेड़ रहे,भूईं छुवत बरोह वाला | एकर बरोह के नरम मुलायम ललछौंहा टूसा बचपन में चूसले बानी जा हमनी के | एही बर किहे से (अब जवरही दाई के असथान) गाँव में एगो पाँच-सात फीट के गली गइल बिया , बीच गाँव में चीरा लगावत ,कतो-कतो कतरी काटत | एही गली में सीधे दस-बीस डेग दखिन बढ़ला प फूल मियां के किराना के दोकान,रामचन्नर पाँड़े, छोटकन गोंड़ के घोन्सार वाला घर, नाऊ आ तेली लोग के घर आ जाला | एहिजा से किछु डेग आगे से पछिम एगो किछु अवरू पातर गली रामनाथ तेली के घर के बगल से दुसाध टोली में जाले | ओह गली के पकड़ लेला प सीधे केहू जमुलाल बाबा के चउरा तक पहुँच जाला | अब त पड़री गाँव में एतना बिकास के लहर चलल कि सब गलियन में खड़ंजा बिछ गइल बा | हमनी के बचपन मेें एह गली से क क बेर पछिम दिसा में निकल के सिमरी बज़ार आ इसकूले गइल बानी जा | सिमरी के दुद्धी पट्टी के मिडिल इसकूल में |अब त दुसाध लोग दू घर से ढेर घर हो गइल बा | हमरा गाँव के जमुलाल बाबा एही लोग के परिवार के एगो पुरनिया रहलन | कबो कँवनो दुरघटना से उन्हुकर मउवत हो गइल असमय त बाबा बन के पुजाए लगलन | लोग कहेला कि मरे के बेर उन्हुका आतमा के बहुते तक़लीफ भइल रहे | उन्हुकर परान गरदन तक आ के अँटक गइल रहे | हमरा बरहम आ बाबा लोग के बारे में ई पता बा पुरखा-पुरनिया लोग से कि ऊ लोग कहीं कँवनो दुरघटना में जान गँवा देत रहे लोग त बरहम (ब्रह्म) आ बाबा बन जात रहे | बाभन में मरला प बरहम बनत रहे लोग आ दलित -पिछड़ा में बाबा | दलित आ पिछड़ा के बरहम के ना ; बलुक बाबा के दरज़ा दिआइल बा , हमरा बाभन बहुल गाँव में | माने मरलो के बाद भेदभाव | आतमा आ आतमा में कइसन फरक ,जब चोला छूटि गइल ! गेयानमारगी निरगुनिया संत कबीर त कहले बाड़न कि ‘जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर-भीतर पानी | फूटा कुंभ ,जल जलहिं समाना, यह तत्त समझे गेयानी ||’ समझे वाला खातिर कबीर के ई एकही दोहवा बहुत बा | बाक़ी समझल के चाहत बा ! बराबरी के बात कइला प अबहियो दबंग आ धाक वाली जाति के लोग आँखि गड़ोरे लागेला |जे होखे, जबुन भा नीमन — बरहम अा बाबा में फरक कइल गइल बा | बरहम ‘ब्रह्म’ हो गइलन आ बाबा कह के आदमिए के ‘कटेगरी’ में राखल गइल बा | असल बात ई बा कि हमनी के भोजपुरिया समाज में अभी जाति बेवस्था के भीतर धाक जमा के रहे वाला किछु दबंग जाति के लोग बा | एह लोग के धाक जबले ना टूटी उत्पीड़न बंद ना होई ना सामंतवाद के बिदाई होई | धाक वाला बरहम के दरज़ा पा जाला आ कमज़ोर बाबा बनावल जाला | जमुलाल बाबा दुसाध रहलन | दुसाध दलित में आवे ला लोग | कतो हिन्दी के महान लेखक हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी लिखले बानी कि दुसाध दुर्धर्ष से बनल बा | ई जोधा अा लड़ाका जाति ह | ई लोग भारत में आर्य जाति के आगमन के पहिले क्षत्रिय के बराबर रहे | पराजित भइला के बाद ई लोग दलित आ सूद्र बना दिहल गइल |
अब बरहम आ बाबा काहे बन जात रहे लोग, एह में बहुते रहस्य बा | गाँव में लोग अबहियो माने ला कि जेकर उमिर बाँचल बा आ ऊ कँवनो हादसा में आपन परान छोड़ देलस त ओकर परान घूम-फिर के अपना टोला आ गँउवे में रही | एह से ओकरा के एगो नियत जगह प बान्ह के राखल जाला | ओकर पुजइया होला आ ओकरा के चढ़ावा चढ़ावल जाला ; ताकि ऊ केहू के नुकसान ना चहूँपा सके | हर जाति के लोग बरहम ना होखे | बरहम त बाभने बनी जब ओकर असमय मिरतू हो जाई | दलित आ पिछड़ा बाबा बनी, अकाल मिरतू के बाद ; बाकी़ एहू में रजपूत भा छत्री के बरहम भा बाबा बनल हम नइखी सुनले | किछु लोग कहेला कि बरहम ऊहे होई जे नुकसान ना पहुँचा सके | मरखाह भा निम्न कुल के रही त बदला ली, मारपीट करी ,केहू के अनासे सतावत रही | ई सब हमार ना, लोक के मत ह ,जेहँवा सबरन -अबरन, अगड़ा-पिछड़ा आ दलित के लेके बहुते बँटवारा बा | एह सब प पुरान मत चलल आवत बा | आधुनिक तरक-बितरक,बिबेक आ गेयान के बात करे प अबहियो लाठी चल जाई | चलि का जाई, साँचो क क बेर चललो बा | हमरा गाँव में केतना लोग सब जानियो के चुप रहेला, अपना के जोख़िम में ना डाले |
बरहम आ बाबा लोग हमरा गाँव के चारों दिसा में बा | जमुलाल बाबा पछिम में त बघउत बाबा दखिन में बाड़े | पड़री से डुमराँव टेसन के बीच में बबुआ बरहम बाड़न सड़किए से सटल | धनेजरपुर के आगे गाँव के ओर से जाए में बाएँ परिहें आ डुमराँव टेसन से अावे में दाएँ मझवारी के पास | ई बबुआ बरहम तिवारी बाभन रहन | लोग इन्हिका के गोड़ लाग के आगे बढ़ेला | अब एहिजा एगो मंदिर आ कोठरियो बन गइल बा जेवना में एगो बाभन पुजारी रहे लागल बाड़े | ओहिजा पएदल चले वाला राही-बटोही से लेके गाड़ी-घोड़ा से चलेवाला लोग पइसा चढ़ावे ला | बघउत बाबा के एगो बाघ खा गइल रहे ठाढ़े त उन्हुकर नाव पर गइल बघउत बाबा | ई पिछड़ी जाति के रहलन एह से बाबा कहात रहलन | पहिले हमरो गाँव के चारों तरफ़ सघन बन रहे | जेने देख ओने बिरिछे -बिरिछ | एह सघन बन में बाघो आ भालू रहत रहन स | अब हमार गाँव के देख के केहू ई कल्पना ना कर सके कि ई कबो सघन बन से घिरल होई!
ह त बात होत रहे जमुलाल बाबा के | बरहम लेखा बाबा लोग के चाहे केवनो जाति के होखे लोग, ओह लोग के बारे में मान्यता बा कि ऊ लोग के बहुत ‘चलती’ रहेला | ‘चलती’ माने परभाव | कबो-कबो सोचीं ला कि केवनो किरिया से केतना सुन्नर सबद गढ़ा जाला लोक में! चलना किरिया से चलती बनल बा | चलती माने जेकर चलत होखे, असर होखे | चलती जइसे गाँव के मुखिया, प्रांत के मुखमंत्री आ देस के परधानमंतरी के होला ; ओही लेखा बरहम आ बाबा लोग के चलती होला | लोग बात -बात प कहेला कि बबुआ बरहम आ जमुलाल बाबा के अबहियो ढेर चलती बा | आजु ले ईहे सुनाइल बा कि ई लोग रात-बिरात, मोका -बेमोका, समय -बेसमय, टाइम -कुटाइम अपना गाँव के लोगन के क क बेर सहाय भइल बा लोग | अब रउरा तरक अा दलील से भले साबित क देब कि ईस्सर ना होखसु, बरहम आ बाबा लोग के चलती के बात झूठ -फरेब ह ; बाक़ी लोक के आस्था एह लोग में बा त बा | केकर -केकर दिमाग़ के जाला साफ़ करब ; केकरा-केकरा से बहस करब जी! हमरा गाँव के उत्तर -पछिम एके जगहिया प ढेर बरहम लोग के चउरा बनावल गइल बा | पहिले छोट बच्चा गुज़र जात रहन स रोग -बेयाधी से भा केवनो हादसा में त ओहनियो के चउरा बान्ह दियात रहे | हमनी के हिन्दू धरम में कहाला कि ‘मान ल त देव ना त पत्थर! ‘ एहिजा डेगे-डेग प चउरा बान्हल जाला |
जमुलाल बाबा के मिरतू के बारे में एगो बात लोग कहेला | एह में केतना सचाई -झुठाई बा, हम ना कह सकीं | हमहूँ एह बात के सुनत आइल बानी | गाँव के मरदाना आ मेहरारून से ,बूढ़ -जवान सबसे | लोग कहेला कि जमुलाल बाबा अपना पड़री गाँव के लइका- लइकियन से नाराज़ रहेलन | ऊ का त कहेलन कि हम केहू के नुकसान ना पहुँचा सकीला ; बाक़ी एह गाँव के लइकियन के सराप देले बानी कि ऊ कतहूँ केतनो धनी आ सुखी -संपन्न गाँव आ परिवार में बियाह के जइहे स तबो सुखी जिनगी ना जीहे स | केतना लोग परतोख दे के कहेला कि एह बात में दम बा | जमुलाल बाबा के मिरतू के पाछा के कँवनो घटना जाड़ के कउड़ा से जुड़ल बा | आन गाँव के मेहरारू भौजाई बन के आवेली स आ चाची -आजी बन जाली स त किछु अनुभव हो जाला ओहनी के ,गाँव के बारे में | ऊ कहेला लोग एह गाँव के लइकियन के चिढ़ावहूँ के अंदाज़ में कि एह गाँव के किछु लइकी सब कउड़ा के आगि उटकेर के जमुलाल बाबा के देह प फेंक देले रही स | एह कांड में बिगड़ल-मनसोख लइकवो सामिल रहलन स दबंग परिवार के ; बाक़ी ओहनी के दोख माफ हो गइल रहे –” समरथ के नहिं दोष गुसाईं |” पितृ सत्तात्मक समाज में दंड मिलल खलिसा लइकियन के | ऊ जड़हल रहन आ भोर में कउड़ तापत रहलन फाटल-पुरान कंबल ओढ़ के, ‘पूस की रात ‘ कहानी के हल्कू लेखा | ऊ बहुते सोझ आ सीधा आदमी रहलन | काम से काम रखेवाला | पता ना का बात परल कि लोग उन्हुका प आगि फेंक दिहल | ई आजु के ‘मॉब लिंचिंग’ लेखा हादसा रहे |
ओही घरी ऊ (जमुलाल) बाबा सरपले रहलन आ बाद में देह के जख़म से उन्हुकर परान निकलल रहे | ऊ सरापहूँ के बेर लइकन के ना सरपलन | अब एह घटना में केतना नून बा आ केतना मरीचा — किछु कहल मोसकिल में डालल बा अपना के | दुसाध लोग आजुवो उन्हुका के आपन बाबा आ आपन पुरनिया माने ला लोग | अब त पूरा गाँव उन्हुकर पूजा करे ला | हमार गाँव में कहल जाला कि जमुलाल बाबा के बहुते ‘चलती’ बा | किछु लोग एकरा के समन्वय कहेला कि निम्न बरन आ जाति के लोग बड़ जाति के लोग के आस्था के केन्द्र हो सकेला | एकरा पाछा भय के मनोविज्ञानो ज़रूर काम करत होई !
——
लखनऊ, उत्तरप्रदेश

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