प्रेम की उम्मीद मर्म से, स्नेह में, आजीवन संग-साथ निभाने में की जा सकती है, प्रेम दया या भीख में दी जाने वाली वस्तु नहीं हो सकती। प्रेम में पड़ कर हम किसी पर एहसान नहीं करते। सच पूछिए, प्रेम में कोई सलाह नहीं। प्रेम अनुभव और आत्मविश्वास की बात है।
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प्रेमी होने के लिए
प्रेम को बाॅंधना
प्रेम को खो देना है; इसलिए –
प्रेमी होने के लिए वृक्ष बनना पड़ता है,
छाया की तरह शान्त रहना होता है।
हृदय विशाल,
आजानुबाहु,
भींच सके भीतर अपने, प्रेम को।
प्रेमी होने के लिए सबल सम्बल से
स्थितप्रज्ञ
स्थिरप्रतिज्ञ
स्थिरचित्त होना पड़ता है।
आह्लादित प्रेमी-मन को निरन्तर
अपलक
अविराम
मन-मोहक इन्द्रधनुषी रंग बिखेरना होता है।
तपते, पर सबको श्रान्त करते,
प्रेमी को-
दुःख, राग-द्वेष सब छोड़,
विस्तृत जड़-चेतन में अपना
प्रेम बिखेरते रहना पड़ता है।
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अदृश्य
स्त्री को पुरुष पर की गई,
अपनी हिंसा नहीं दिखती;
पुरुष को दिखती है
पर वह अक्सर
ठहर-सा जाता है
अपने द्वारा अर्जित संस्कारों
अपने पारिवारिक-सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण
किंवा अपने एकतरफा प्रेम में;
और
स्त्री के सुधरने की उम्मीद में
ताउम्र भोगता है अभिशाप
झेलता है टीस
अनागत प्राप्य प्रेम के लिए।
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डाॅ. कामाख्या नारायण सिंह
7002438751
गुवाहाटी, असम