By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

Lahak Digital

News for nation

  • Home
  • Lahak Patrika
  • Contact
  • Account
  • Politics
  • Literature
  • International
  • Media
Search
  • Advertise
© 2023 Lahak Digital | Designed By DGTroX Media
Reading: यात्रा संस्मरण : बादामी गुफाओं की सैर : गोवर्धन यादव
Share
Sign In
0

No products in the cart.

Notification Show More
Latest News
अजित कुमार राय की कविताएं
Literature
कन्नड़ संस्कृति की गरिमा विदेशों में – “कन्नड़ कहले” कार्यक्रम!!
Entertainment
*दिल, दोस्ती और फाइनेंस: डिजिटल स्क्रीन पर दोस्ती और सपनों की कहानी*
Entertainment
मिनिएचर्स ड्रामा और फोर ब्रदर्स फिल्म्स प्रस्तुत करते हैं दिल दोस्ती फाइनेंस
Entertainment
मंडला मर्डर्स समीक्षा: गजब का थ्रिलर और शरत सोनू का दमदार अभिनय
Entertainment
Aa

Lahak Digital

News for nation

0
Aa
  • Literature
  • Business
  • Politics
  • Entertainment
  • Science
  • Technology
  • International News
  • Media
Search
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Advertise
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Lahak Digital > Blog > Travel > यात्रा संस्मरण : बादामी गुफाओं की सैर : गोवर्धन यादव
Travel

यात्रा संस्मरण : बादामी गुफाओं की सैर : गोवर्धन यादव

admin
Last updated: 2023/10/05 at 3:09 PM
admin
Share
30 Min Read
SHARE

( बादामी गुफ़ा क्रमांक 1- बाएं से दाएं- श्री जयंत डोले (70+), गोवर्धन यादव (80), -राजेश्वर अनादेव (81) विजय अनादेव (75)

बार-बार हाँफ़ने लगता है बूढ़ा इंजिन
नहीं चढ़ पाता चढ़ाई
सुस्ताता है देर तक
भरता है अपने फ़ेफ़ड़ों में स्टीम ( हिम्मत)
धीमी चाल से ही सही, मगर
पहुँच जाता है अपनी मंजिल पर.

उस बूढ़े इंजिन की तरह ही हम चारों मित्रों का भी यही हाल था. सभी 70+, 80+ में चल रहे हैं. उम्र का अपना तकादा है. घुटनें जवाब देने लगे हैं,लेकिन अपना साहस (स्टेमिना) बनाए रखते हुए हम पहाड़ों पर, धीरे-धीरे ही सही, लेकिन उसकी चोटी पर जाकर ही दम लेते हैं. अभी कुछ ही दिन पहले हम त्रिपुरा के उनाकोटि, अंदमान-निकोबार की यात्रा से लौटे ही थे कि अगला कार्यक्रम बन कर तैयार हो गया. इस बार की हमारी यात्रा थी, कर्नाटक राज्य के हम्पी में स्थित, ऐश्वर्यशाली साम्राज्य विजयनगर का स्वर्णिम ऐतिहासिक स्थली का भ्रमण करना, कि‍ष्किन्धा में शबरी आश्रम, पम्पासरोवर, वाली-सुग्रीव की गुफ़ाएँ तथा वीर हनुमानजी की जन्मस्थलि आंजनाद्रगिरि पर्वत के तथा जगप्रसिद्ध बादामी गुफ़ाओं को देखने की. बादामी गुफ़ाएं होसपेटे से लगभग देढ़ सौ किमी की दूरी पर स्थित हैं.

पाँच सितम्बर 2023 को हम चार मित्र श्री राजेश्वर अनादेव, विजय अनादेव तथा जयंत डोले तथा मैं स्वयं नागपुर से कर्नाटक के जिला होसपेट के लिए ट्रेन 12650 संपर्कक्रांति से दिनांक 05-09-2023 को रात्रि के 23.00 बजे रवाना हुए. ये ट्रेन दूसरे दिन अर्थात 7 सितंबर की शाम छः बजे के करीब पहुँची. हमने हुबली और बादामी गुफ़ाओं को देखने के लिए होसफेट के स्थानीय टूर-आपरेटर श्री अशोक शेट्टी ( मोबा- 8050144139 ) को अधिकृत किया था. ट्रेन के होसपेट पहुँचते ही श्री अशोक शेट्टी स्वयं रेल्वे-स्टेशन पर उपस्थित हुए थे. उन्होंने हमारा भावभीना स्वागत किया और KSRTC बस स्टैंड के पास “स्वागत” होटेल ( 7204839998 / 7406539998 ) के दो कमरे आवंटित कर रखे थे, अपने स्वयं के वाहन से हमें वहाँ पहुँचाया.
चुंकि रात्रि हो चुकी थी. दो दिन की लंबी यात्रा के कारण थकान होने के नाते अन्यत्र जाने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता था. अतः हमने रात्रि विश्राम करना उचित समझा. निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सुबह साढ़े सात बजे दिनांक 08-09-2023 को हमें हासपेटे से लगभग 150 किमी दूर स्थित बादामी गुफ़ाओं को देखने जाना था. गाड़ी लगायी जा चुकी थी. इसी होटेल में जलपान की उत्तम व्यवस्था थी. अतः हमने दक्षिण भारतीय पकवानों ( बड़ा, इडली, दोसा ) का आनंद उठाया और बादामी गुफ़ाओं की ओर रवाना हुए.
बादामी गुफ़ा के इतिहास को गहराई से जानने के लिए हमने स्थानीय गाईड श्री कोट्रेस. स्वामी.( मोबा-9448440220) की सहायता ली. श्री कोट्रेस स्वामी फर्राटेदार अंग्रेजी में वार्तालाप करते हैं. चुंकि हम सभी अंग्रेजी भाषा के जानकार होने के कारण, बादामी गुफाओं के बारे में सुक्ष्म-से सुक्ष्म जानकारियाँ प्राप्त करते जा रहे थे. सौम्य और मधुरभाषी कोट्रेस बड़ी ही विनम्रता के साथ, भाव-विभोर होकर हमें अधिक से अधिक जानकारियो से अवगत कराते जाते थे. हमने उन्हें सलाह देते हुए कहा-“ यह जरुरी नहीं है कि सभी पर्यटक अंग्रेजी भाषा में निष्नात होंगे. चुंकि अब पर्यटकों की संख्या में दिनों-दिन बढ़ौतरी हो रही है, जिसमें अन्य भाषा-भाषी भी आयेंगे. अतः आपको अंग्रेजी के अलावा हिंदी तथा अन्य भाषाएं भी सीखनी चाहिए.” बड़ी विनम्रता के साथ उन्होंने हमारी सलाह को उचित ठहराते हुए वादा किया कि वे निकट भविष्य में अच्छी हिंदी सीखेंगे और पर्यटकों को उनकी अपनी भाषा में मार्गदर्शन देंगे.
मित्रों,
विजयनगर साम्राज्य की कहानी, उसके गौरवशाली इतिहास पर हम फ़िर कभी बात करेंगे. फिलहाल तो हम चले चलते हैं बादामी गुफाओं की ओर. आसमान को छूती पर्वत श्रेणियों को और उसमें बनी गुफाओं को देखकर मन प्रसन्नता से भर उठता है.
सहसा मेरा मन अतीत में जा पहुँचता है और मैं गहराई से उन क्षणों की याद में खो जाता हूँ, जहाँ एक शिल्पी अपनी छेनी और हथौड़ी की सहायता से, उस बादामी रंग के विशालकाय पहाड़ को करीने से काट-छांटकर, अपने आराध्य भगवान शिवजी तथा भगवान विष्णु की प्रतिमाओं को उत्कीर्ण कर रहा होता है तत्पश्चात वह स्तंभों और छत पर भी कलात्मक भी नक्काशियाँ भी उत्कीर्ण करता है. उसकी छेनी और हथौड़ी से निरन्तर आ रही ठक-ठक की आवाज और बांसूरी के सप्तम स्वर मेरे कानों से आकर टकराने लगते हैं.
.
कभी निराश नहीं होता शिल्पी खासकर इस बात को लेकर भी कि, उसकी झोली में नहीं है पेन, कागज, तरह-तरह रंग और ब्रश उसकी झोली में होती है,सदा से ही एक छेनी, एक हथौड़ी और एक बांसुरी. फ़ुर्सत के क्षणों में- वह उकेरता है पत्थर के पत्थर दिलों पर तरह-तरह की मूर्तियाँ, कभी शिव की, तो कभी वि‍ष्णु की, जबकि शायद ही उसने देखा होगा इन दोनों को. मूर्तियों को उकेरने के बाद वह कुछ देर सुस्ताता है फ़िर भरता है अपनी चिलम धुएँ का छल्ला उड़ाते हुए वह मिटाता है अपनी सारी थकान. फ़िर धीरे से निकलता है अपनी बाँसुरी. उसकी बांसुरी से निकलते सप्तम स्वर गूंजते रहते हैं देर तक मेरे कानों में.

बागलकोट जिले के अलावा भारत में कई गुफ़ा-मन्दिर देखे जा सकते हैं.

(1) महारा‍ष्ट्र में स्थित अजंता-एलोरा की गुफाएं (2) एलीफेंटा की गुफ़ाएं (3) मध्यप्रदेश में भोपाल के पास भीमबेटका तथा बाघ गुफाएं, (4) उड़ीसा में स्थित उदयगिरि की गुफ़ाएं. (5) हिमालय प्रदेश की स्पीति घाटी में ताबो गुफ़ाएं (6) बिहार में बोधगया से लगभग 12 किमी दूर डुंगेश्वरी गुफ़ाएं.(7) ओड़िसा में भुवनेश्वर की खंडगिरि और उदयगिरि की गुफ़ाएं (8) आंध्र के विजयवाड़ा में उंदावल्ली गुफ़ाएं (9) विशाखापत्तनम की बोर्री गुफ़ाएं (10), लोनावाला के पास कार्ला गुफ़ाएं (11) मेघालय में मावसमाई गुफाएं देखी जा सकती हैं. एलेरा गुफ़ा-मन्दिर इन सभी गुफ़ाओं में सबसे बड़ा गुफ़ा मन्दिर है.

माना जाता है कि 6 वीं सदी में चालुक्य वंश द्वारा निर्मित बादामी गुफ़ाएं भारत के सबसे पुरानी गुफ़ाओं में से एक है. यहाँ की सभी गुफ़ाएँ नागर और द्रविड़ शैली में बनाई गई हैं. यही कारण है कि गुफाएं देखने में बहुत ही सुन्दर और आकर्षक दिखती हैं, बल्कि यह भी कहा जाता है कि गुफाएं अपनी सुन्दर नक्काशियों के लिए ही देशभर में जानी जाती हैं. बादामी गुफा मन्दिर दक्कन पठार के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक है. इनके और ऐहोले के मन्दिरों के निर्माण से मलप्रभा नदी के घाटी क्षेत्र में मन्दिर वास्तुकला तेजी से विकसित होने लगी और इसने आगे जाकर भारत-भर में हिन्दू मन्दिर निर्माण को प्रभावित किया. बादामी गुफ़ाएं अपनी स्थापत्य शैली के लिए जानी जाती हैं. ये उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली का अनूठा मिश्रण है.

चारों गुफा मन्दिर बलुआ पत्थर की चट्टानों को काटकर बनाए गये हैं तथा दीवारों, खंभों और छत पर हिंदू देवी-देवताओं की जटिल नक्काशियाँ देखी जा सकती है. गुफा परिसर की सुंदरता को उजागर करने के लिए प्राकृतिक प्रकाश का उपयोग एक आश्चर्यजनक विशेषता है. गुफाओं के अनूठे डिजाइन के कारण, प्राकृतिक रोशनी अंदरूनी हिस्सों में प्रवेश करती है, जो मूर्तियों और नक्काशी को रोशन करती हैं. चारों गुफाएं एक आम रास्ते से जुड़ी हुई हैं. गुफ़ाओं तक पहुँचने के लिए लगभग 2000 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है. जिससे कोई भी आसानी से एक गुफा से दूसरी गुफा तक आ-जा सकता है. गुफाएं भारतीय राक-कट वास्तुकला अथवा बादामी चालुक्य वास्तुकला के आम से प्रसिद्ध है. 6 वीं शताब्दी की सबसे प्रारंभिक तिथि है. बदामी एक आधुनिक नाम है और पहले इसे चालुकु राजवंश की राजधानी वातापीनगर के नाम से जाना जाता था., जिसने 6 वीं से 8 वीं शताब्दी तक कर्नाटक के अधिकांश भाग पर शासन किया. बादामी एक मानव निर्मित झील के पश्चिमि तट पर स्थित है जो पत्थर की सीढ़ियों वाली मिट्टी की दिवार से घिरा हुआ है. पल्ल्वों ने अपनी हार का बदला लेने के लिए बादामी पर अपना अधिकार जमाया और उन्हें नष्ट किया. बादामी भी विजयनगर राजाओं, आदिल शाहियों, सावनूर बवाबों, मराठों, हैदरअली और अंततः अग्रेजों के अधिकार में रहा. मूर्तिया खण्डित होने के कारण अब इनकी पूजा नहीं होती है. . पहाड़ों का रंग बादाम के रंग के जैसा होने के कारण भी शायद इसका नाम बादामी पड़ा होगा, ऐसा मेरा अपना अनुमान है,

वातापी को लेकर एक दिलचस्प कहानी पढ़ने को मिलती है. कहते है कि इस इलाके में वातापि और इल्वल नामक दो दैत्य रहा करते थे. इल्वक मायावी था. वह अपने भाई वातापि को बकरा बना देता. फिर उसे मारकर, उसके मांस को पकाकर आने-जाने वाले राहगिरों को खिला देता. जब यात्री उस मांसहारी भोजन कर चुका होता है, तब वह अपने भाई को आवाज देता-“ वातपि मेरे भाई ! तुम कहाँ हो, मेरे पास चले आओ.” भाई की आवाज सुनते ही वातापि यात्री का पेट फाड़कर बाहर निकल आता था. इस तरह उसने, न जाने कितने ही लोगों की जानें ले चुका था.

एक दिन महान ऋषि अगस्त्य जी उसी रास्ते से जा रहे थे. इल्वल ने उन्हें जाते देखा और प्रार्थना की कि भोजन करके जाइए. अपनी योग-सिद्धियों के बल पर अगस्त्यजी से उसके छल को भाँप गए और भोजन करना स्वीकार कर लिया. इल्वक ने वातापि को बकरा बना दिया.फ़िर उसका वध किया और मांस पकाकर ऋषि अगस्त्य जी को खिला दिया. जब ऋषि ने भोजन कर लिया, प्रसन्नवदन इल्वक ने अपने भाई वातापि को आवाज दी कि वह जहाँ भी है.मेरे पास चला आए. कई बार बुलाने के बाद भी जब उसका भाई वापिस नहीं आया. तब ऋषि अगस्त्य जी ने उसे बताया कि मैंने तुम्हारे भाई को पेट में ही मार दिया है और अब तुम्हारी बारी है. यह कहते हुए उन्होंने वातापि का भी वध कर दिया.

मलप्रभा नदी के घाटी क्षेत्र में स्थित बादामी गुफा मन्दिर प्राचीन भूतनाथ झील के किनारे स्थित है. झील के दूसरी तरफ़ एक विशाल इमली का पेड़ है, बीच में एक मन्दिर है, जो स्थानीय नाग देवता-“नागम्मा” को समर्पित है.. पास ही मे दो शिव मन्दिर हैं, जो उन्हें आत्मा के देवता “भूटानाथ” के रूप में पहिचाने जाते हैं. मन्दिर के आंतरिक गर्भगृह के अंदर, पानी के किनारे पर भगवान एक विशिष्ट राजसी मुद्रा में विराजमान हैं.

बादामी गुफा नं 1. (शैव गुफा)

कर्नाटक राज्य के बगलकोट जिले में बादामी नामक शहर में स्थित “बादामी गुफा” के नाम से जग-प्रसिद्ध हैं. ये गुफाएँ भारत की सबसे पुरानी गुफाओं के नाम से जानी जाती है. 6 वीं सदी में चालुक्य वंश द्वारा इनका निर्माण किया गया था. ये सभी गुफाएं द्रविड़ तथा नागर शैली में बनवाई गई हैं.. गुफा में उकेरी गई कलात्मक नक्काशी देखकर पर्यटक ठगा-सा खड़ा रह जाता है.
चारों गुफाऒं में पहली गुफा “शैव गुफा” सबसे प्राचीन मानी जाती है. इस गुफ़ा में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर और हरिहर अवतार की नक्काशी के साथ ही भगवान शिव का तांडव नृत्य करती सुन्दर और आकर्षक प्रतिमा उकेरी गई है. इसके दाहिनी ओर भगवान शिव का हरिहर रूप और बांई ओर वि‍ष्णु , महि‍षासुर मर्दिनी, गणपति, शिव-लिंग और शण्मुख की मूर्तियों के दर्शन होते हैं.

मंदिर के छत पर भी कलात्मक नक्काशी की गई है. दरवाजे की नक्काशी में गजलक्ष्मी, स्वस्तिक चिन्ह, उड़ते हुए घोड़े, ब्रह्मा, शे‍षनाग की शैया पर विश्राम करते वि‍ष्णु जी को देखा जा सकता है. गुफा के बरामदे के प्रवेश द्वार पर भगवान शिव के निवास के रक्षक की छः फिट दो इंच बड़ी मूर्ति है. इसने अपने बांए हाथ में त्रिशूल तथा दाहिना हाथ अपने कूल्हों पर कात्यवलंबिता या कटिहस्त मुद्रा में है, जो उसके सतर्कता और आत्मविश्वास का प्रतिनिधित्व करता है. इसके सिर के पीछे प्रभा-मंडल, गले में हार, हाथों में कंगन और कानों में मुण्डल पहिने हुए है. इस मूर्ति के ठीक नीचे सुंदर ” वृ‍षभ-कुंजरा ” ( दो अलग-अलग नर जानवरों का संयोजन ) है. इसे देखकर भ्रम होना स्वभाविक है. एक तरफ़ से देखने पर एक बैल अपना सिर उठाए हुए दिखता है और जब कोई इसे दूसरी तरफ़ से देखता है तो एक हाथी दिखाई देता है.

पौराणिक रूप से, यह प्रतिमा उस समय का प्रतिनिधित्व करती है जब भगवान वि‍ष्णु और देवी लक्ष्मी अपने भक्तों के बीच समस्या को सुलझाने के लिए शिवजी और पार्वतीजी से मिलने आए थे. भगवान वि‍ष्णु और देवी लक्ष्मी हाथी पर और भगवान शिव और देवी पार्वती नंदी पर सवार थे. वे मिले और विलीन हो गए.

इस मूर्ति के माध्यम से वे अपने भक्तो को यह संदेश देना चाहते थे कि वे” एक “ ही हैं. वास्तव में यह एक मिश्रित रूप है, जो दोनों का प्रतिनिधित्व करता है. इसी रक्षक प्रतिमा के ठीक ऊपर नंदी पर बैठे शिव-पार्वती है. पार्वतीजी के दोनों पैर एक ही तरफ होने और जिस तरह से उन्होंने भगवान शिव को पकड़ रखा है, देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे महिलाएं दोपहिया वाहन पर अपने पतियों को पकड़कर बैठती हैं.

गुफा के प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर भगवान शिव जी की अठारह भुजाओं वाली मूर्ति बनी हुई है. इस मूर्ति में वे ललित-नाट्य, चतुर-तांडव या लौकिक नृत्य कर रहे है. पांच फिट की यह प्रतिमा भव्य है. भगवान शिव गजहस्ता मुद्रा में एक हाथ अपनी छाती पर रखे हुए हैं. दूसरे हाथ में त्रिशूल, तीसरे में डमरू, चौथे में जलता हुआ अग्नि-पात्र, तथा एक हाथ में कुल्हाड़ी दिखाई देती है. शेष भुजाएँ अलग-अलग मुद्राओं में हैं- जैसे- कटक मुद्रा, छिन्न मुद्रा, अभय मुद्रा, मृग मुद्रा, खट्वांग मुद्रा तथा मयूर मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए दिखाई देते हैं. उनकी सुंदर और आकर्षक मुद्रा और हाथों का सामन्जस्यपूर्ण श्रृँखला गुप्त काल के परि‍ष्कार और अनुपात को इंगित करती है. शिवजी के चरणों के ठीक पास में उनका वाहन नंदी, भगवान गणेश और नारद मुनि भी उपस्थित हैं. नारद का लयात्मक ढोलकवादन, न केवल शिव को नृत्य करने पर मजबूर कर रहा है, बल्कि यह भगवान गणेश को भी उनके भारी-भरकम शरीर के साथ नृत्य करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.

तांडव नृत्य करती अठारह भुजाओं वाली प्रतिमा, केवल और केवल बादामी गुफा में ही देखने को मिलेगी. संभवतः यह पहली प्रतिमा है, जिसमें शिवजी की अठारह भुजाएँ हैं.

बादामी गुफ़ा-१-में महिषासुर मर्दिनी.

नटराज शिव की मूर्ति के बगल में एक छोटा-सा कक्ष है जिसमें महिषासुर मर्दिनी के रूप में देवी दुर्गा की प्रतिमा दिखाई देती है. राक्षस महिषासुर का भाले से वध करती यह सुंदर प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है. पार्श्व की दीवारों पर भगवान श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय की सुन्दर प्रतिमा उकेरी गई है.

स्तंभो पर नक्काशी.

पाँच स्तंभो के आधार वाली इस गुफ़ा में प्रत्येक स्तंभ में बेहद ही जटिल नक्काशीदार रत्नों की मालाएँ, हंसों की पंक्तियाँ और कलात्मक पत्तेदार आकृतियां उकेरी गई हैं.

हरिहर की प्रतिमा.

इसी गुफ़ा क्रमांक एक (1) में बायीं ओर हरिहर की एक बड़ी प्रतिमा और बरामदे के अंत में अर्धनारीश्वर के रूप में शिवजी की मूर्ति उकेरी गई है, देखने को मिलती है. भगवान हरिहर की सात फ़िट और नौ इंच ऊँची प्रतिमा सुन्दरता और उसके चारो ओर की गई सुंदर और कलात्मक नक्काशी देखकर पर्यटक ठगा खड़ा रह जाता है.

हरिहर की मूर्ति में भगवान हरि भाग बायीं ओर और हर (शिव) का रूप दाहिनी ओर है. इस पैनल में देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु (हरि) के साथ हैं और देवी पार्वती भगवान शिव की ओर हैं. दोनों देवियों ने करघनी, सिर पर टोपी और कंगन धारण किया हुआ है. मूर्ति के आधे हिस्से में शंख है और भारी आभूषण पहने हुए हैं. भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ हरि की ओर है, जबकि नंदी हर (शिव.) की ओर है. मूर्ति के आधे हिस्से में शिवजी के प्रिय नागराज को उनके आभूषण के रूप में दर्शाया गया है.

इस मूर्ति के माध्यम से शैव मतावलम्बियों और वैष्णव मतावल्बियों को संदेश देने का प्रयास किया गया है कि शिव और विष्णु दोनों एक ही देवता है.

अर्धनारीश्वर

भगवान शिव जी के परम भक्त नंदी और नंदी की बगल में भृंगी हाथ होड़े हुए खड़े दिखाई देते हैं. देवी भगवती पार्वती शिवजी के बाएं हिस्से में जबकि भगवान शिव देवी के दाएं हिस्से में हैं. देवी पार्वती की ओर एक महिला परिचायिका खड़ी है. महिला परिचायक ने बड़ी संख्या में आभूषण पहिने हुए है और उसके हाथ में गहनों का एक डिब्बा है.

शिवजी की टोपी के किनारे अर्ध चन्द्र और खोपड़ी भी देखी जा सकती है. भगवान शिव जी का श्रृँगार नागों से किया गया है. एक सांप उनकी बाँह पर बाजूबंद की तरह लिपटा हुआ है, एक कानों की बाली की तरह, तीसरा उनकी कमर में लिपटा हुआ है और चौथा उसके उठे हुए हाथ में कुल्हाड़ी लिए हुए है.

देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व करने वाला बांया आधा हिस्सा पुरुष, आधे से अलग पैटर्न के हार, बेल्ट, बाजूबंद और कंगन पहिने हुए है. उन्होंने एक हाथ में फ़ूल, दूसरे में बांसुरी (वीणा.) पकड़ा हुआ है. इस वीणा का दूसरा भाग पुरुष के अगले हाथ में दर्शाया गया है.

बादामी गुफ़ा-1- की छत.

गुफ़ा की छत को पांच अलग-अलग हिस्सों में देखा जा सकता है. छत का केन्द्रीय भाग मानव-धड़ के साथ चित्रित नागराज की गहरी नक्काशीदार मूर्ति से सुशोभित है. इसके दोनों ओर उड़ते हुए यक्ष और अप्सराएं हैं. नर यक्ष की आकृति तलवार लिए हुए है. दोनों नक्काशी में महिलाएं पुरुष आकृतियों के करीब हैं और उनके ऊपर झुकी हुई हैं. दोनों महिलाओं की टोपी में काफी भिन्नता है. बरामदे में दो अतिरिक्त पंक्तियों है, जो हमें मंडप की ओर ले जाती हैं, जिसके पीछे की दीवार में एक छोटा-सा शिव-लिंग बना हुआ है. नंदी गर्भगृह की ओर मुख किए हुए है. पर्यटक जब इस गुफा की छत की ओर आश्चर्यभरी निगाहों से देखता है और दांतो तले अंगुली दबा लेता है और सोचता है कि छत पर इतनी बारिक कलात्मक नक्काशी कैसे की गई होगी?.

बादामी गुफ़ा-नंबर-2

बादामी गुफा के अन्तर्गत आने वाली दूसरी गुफा भगवान विष्णु को समर्पित है. वामन (बौने या त्रिविक्रम) अवतार को चित्रित करती एक प्रतिमा है, जिसका एक पैर पृथ्वी पर और दूसरा आसमान में रखा दिखाई देता है. यहाँ चित्रित भगवान विष्णु का एक और आकार वराह के रूप में उकेरा गया है. भगवान विष्णु को श्री कृष्ण के रूप में चित्रित करने वाली एक प्रतिमा दीवार पर उकेरी गई है.

पहली गुफा से 64 सीढ़ियां चढ़कर गुफा 2 तक पहुँचा जा सकता है. प्रवेश द्वार के दोनों ओर द्वारपाल (अभिभावक) हथियार नहीं, बल्कि फूल लिए खड़े हैं. उभरे हुए चरण के नीचे एक चित्रवल्लरी है जो विष्णु के वामन बौने अवतार की कथा को दर्शाती है , इससे पहले कि वह त्रिविक्रम रूप में परिवर्तित हो जाए. एक अन्य प्रमुख राहत में विष्णु के वराह (एक सूअर) अवतार में देवी पृथ्वी ( भूदेवी ) को ब्रह्मांडीय महासागर की गहराई से बचाने की कथा दिखाई देती है, जिसके नीचे एक पश्चाताप करने वाला बहु-सिर वाला सांप ( नागा ) है.अन्य प्रमुख मूर्तियों की तरह ही इस बादामी गुफाओं में, वराह कलाकृति एक वृत्त में स्थापित है और सममित- ( एक आकृति में रैखिक ( रेख ) सममिति होती है,यदि उसे एक रेखा के अनुदिश मोड़ने पर, आकृति के बाएं और दाएं भाग एक-दूसरे के पूर्णतया संपाती हो जाएं, यह रेखा उस आकृति की सममिति या सममित रेखा या अस कहलाती है.) रूप से रखी गई है.
मंदिर के अंदर भगवत पुराण जैसे हिंदू ग्रंथों की कहानियों को दर्शाने वाली भित्तिचित्र हैं .समुद्र मंथन और कृष्ण के जन्म और बांसुरी वादन की कथा को दर्शाते हैं, जो 7 वीं शताब्दी के भारत में इनके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं. छत और दरवाजे की नक्काशी में गजलक्ष्मी, स्वस्तिक चिन्ह, उड़ते हुए जोड़े, ब्रह्मा, शेषनाग पर सोते हुए विष्णु तथा अन्य को दर्शाया गया है.
गुफा 2 की छत पर एक चौकोर फ्रेम में सोलह मछली की तीलियों वाला एक पहिया दिखाई देता है. अंतिम खण्डों में एक उड़ता हुआ जोड़ा और गरुड़ पर सवार विष्णु हैं. गुफा में मुख्य हॉल दो पंक्तियों में, आठ वर्गाकार स्तंभों द्वारा समर्थित है.

गुफ़ा क्रमांक-3.

पहली और दूसरी गुफ़ा की अपेक्षा यह गुफा सबसे बड़ी और अधिक अलंकृत है. इसके साथ ही यह गुफा अत्यधिक प्रभावशाली है, वराह की इस प्रतिमा के पास में संस्कृत में उत्कीर्ण अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसमें इस गुफा के निर्माण काल, उद्देश्य तथा मंगलेश द्वारा लांजीस्वर ग्राम दान में दिए जाने का उल्लेख है.
प्रवेश-द्वार के बांई ओर अष्टभुजी विष्णु शेषनाग पर, वराह तथा दांए भाग में हरिहर (आधा भाग शिव तथा आधाभाग विष्णु ) नरसिंह त्रिविक्रम या वामन अवतार की विशाल प्रतिमा उत्कीर्ण है. समुद्र मंथन, कृष्ण लीला, पारिजात हरण जैसे महाभारत एवं पौराणिक आख्यान के दृष्य़ उत्कीर्ण किए गए हैं. बरामदे की छत के गोल फ़लकों पर विष्णु, शिव, इंद्र, वरूण, ब्रह्मा और यम की मूर्तियां बनाई गई हैं. बरामदे के सामने वाले स्तंभ पर मिथुन युग्म तथा शिव-पार्वती काम रति, नाग-नागिनी तथा वृक्ष के नीचे विभिन्न मुद्राओं में खड़ी नायिकाओं की आकृति उकेरी गई हैं. सभा मण्डप की छत पर ब्रह्मा,, बरामदे के छज्जे पर नेलावल्के शिल्पी द्वारा विष्णु के वाहन गरूड़ के प्रतिमा बनाई गई है. इस गुफ़ा में कोली मांची, सिंगी माची, अजु आद्धारसिद्धि आदि शिल्पियों के नाम उत्कीर्ण हैं. गरुड़ प्रतिमा के पास दांपत्य राजा नृत्य करते चित्रित किए गए हैं.
गुफ़ा क्रमांक-4
गुफा क्रमांक चार अन्य तीनों गुफाओं की अपेक्षा सबसे छोटी गुफा है,जो जैन धर्म से संबंधित है. इस गुफा में तपस्या करते हुए पार्श्वनाथ को अपने शत्रु कामत पर विजय प्राप्त करते हुए उत्कीर्ण किया गया है. बरामदे में गोमतेश्वर बाहुबली की प्रतिमा बनाई गई है.प्रभामंडल से युक्त एक प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो संभवतः महावीर की है. प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ़ एक तीर्थंकर के पास में जक्कवे नामक स्त्री की एक छोटी सी प्रतिमा है, जो जैन पंथ की एक महिला भक्त थी. इस गुफ़ा के एक खंड पर कोलीमंची नामक शिल्पकार का नाम उत्कीर्ण है.
कहा जाता है कि इन गुफाओं की खोज सन 1924 में स्टेला क्रामेरिश ने की थी. इसे पढ़कर आश्चर्य होना स्वभाविक है कि गुफा मन्दिरो का निर्माण किसी भारतीय शिल्पी/शिल्पियों ने की थी. क्या यह जानकारी जन सामान्य को नहीं थी?. थी, उन्हें जानकारी थी, तभी तो गुफा मन्दिरों को पूजन-पाठ होता था, लेकिन आततायियों ने इन्हें नष्ट-भ्रष्ट कर दिया. चुंकि हिन्दू धर्म के अनुसार खण्डित मूर्तियों की पूजा करना निषेध बताया गया है. फ़िर भीयहाँ लोग बड़ी संख्याँ में वर्षो से आते-जाते रहे है. अतः यह कहना कि बादामी गुफाओं की खोज की गई, सरासर झूठ पर आधारित लगती है.
मित्रों,
जीवन भी एक यात्रा है. मैं अपने हिस्से की यात्रा करता हूँ कहीं जाने के लिए नहीं, मैं यात्रा करता हूँ यात्रा करने के लिए. सबसे बड़ी बात चलते रहना है…… चलते रहना है. चलते रहने के इसी शाबर मंत्र के बल पर मैं यात्राएं करते रहता हूँ. यात्रा का मतलब देश को जानना, देश की ऊर्जा को जानना, उस जीवन शक्ति को जानना, जो हजारों सालों से कुछ सकारात्मक रूप से रची-बसी थी किन्हीं कारणों से नकारात्मकता से घिर गई है, उस देश को हमें खुद तलाशना होगा. वह न तो छवियों में मिलेगा, जिसमें हमारी सोच बंदी है, यह तो उन धूसर पगडंडियों में मिलेगा, जहाँ अभी-अभी कोई सूर्यास्त हुआ है और दूर क्षितिज तक ढेर सारी लालिमा ठहर कर रह गई है. देश उन खण्डहरों में मिलेगा, जहाँ उसका अपना कोई इतिहास था, वह जीवन की नश्वरता के बीच कुछ अर्थ सहेज लेने का संदेश दे रहा है. उसे पहचानना होगा. यह उन नदी तटों पर, उन ग्रामीण बस्तियों-नगरों में मिलेगा, जो एक पुरातन सभ्यता के महान मानवीय भाव-संसार को अपने में समेटे हुए हमें पुकार रहा है. इसी पुकार को सुनने के लिए ही तो मैं यात्राएं करता हूँ, जो जीवन-शक्ति को सबल बनाती है और जीवन जीने की ललक पैदा करती है.
“मार्टिन यान” कहते हैं-“ यात्रा नहीं करने वालों का वैश्विक दृष्टिकोण संकुचित होता है. वे वही देख पाते हैं, जो उनके सामने होता है. वे नई चीजों को स्वीकार नहीं कर पाते.” हमें इस संकुचन की प्रक्रिया से बाहर निकलकर यात्राएं करनी चाहिए.
आज आदमी के सब कुछ है, किसी चीज की कमी नहीं है उसके पास. कमी है तो बस “समय” की कमी है.
त्रिलोचन जी की कविता- “हरा-भरा संसार है” कि कुछ पंक्तियाँ देखें. वे एक संदेश देते दिखाई देते हैं कि जीवन को विस्तार विस्तार देने के लिए यात्रां की जानी चाहिए. इस संसार में बहुत कुछ है, जिसे समय निकालकर अवश्य देखा जाना चाहिए.
जीवन का विस्तार है आँखों के आगे
उड़ती- उड़ती आ जाती है
देस-देस की रंग-रंग की
चिड़ियां सुख से छा जाती हैं
नए-नए स्वर सुन पड़ते हैं
नए भाव मन में जड़ते हैं
अनोखा उपहार है आँखों के आगे.

————————–
103, कावेरी नगर छिन्दवाड़ा, (म.प्र.) 480001, गोवर्धन यादव. 9424356400

Sign Up For Daily Newsletter

Be keep up! Get the latest breaking news delivered straight to your inbox.
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
admin October 5, 2023
Share this Article
Facebook Twitter Copy Link Print
Share
Previous Article बिहार में जातीय गणना का भाजपा आज भी समर्थन करती है, लेकिन कमियों पर प्रश्न भी करेगी : सम्राट
Next Article डॉ. श्यामबाबू शर्मा की लघुकथाएं
Leave a comment Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stay Connected

235.3k Followers Like
69.1k Followers Follow
11.6k Followers Pin
56.4k Followers Follow
136k Subscribers Subscribe
4.4k Followers Follow
- Advertisement -
Ad imageAd image

Latest News

अजित कुमार राय की कविताएं
Literature November 21, 2025
कन्नड़ संस्कृति की गरिमा विदेशों में – “कन्नड़ कहले” कार्यक्रम!!
Entertainment September 1, 2025
*दिल, दोस्ती और फाइनेंस: डिजिटल स्क्रीन पर दोस्ती और सपनों की कहानी*
Entertainment August 16, 2025
मिनिएचर्स ड्रामा और फोर ब्रदर्स फिल्म्स प्रस्तुत करते हैं दिल दोस्ती फाइनेंस
Entertainment August 7, 2025
//

We influence 20 million users and is the number one business and technology news network on the planet

Sign Up for Our Newsletter

Subscribe to our newsletter to get our newest articles instantly!

[mc4wp_form id=”847″]

Follow US

©Lahak Digital | Designed By DGTroX Media

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Register Lost your password?