By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept

Lahak Digital

News for nation

  • Home
  • Lahak Patrika
  • Contact
  • Account
  • Politics
  • Literature
  • International
  • Media
Search
  • Advertise
© 2023 Lahak Digital | Designed By DGTroX Media
Reading: विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’ की ग़ज़लें
Share
Sign In
0

No products in the cart.

Notification Show More
Latest News
“वीकेएस.फिल्म एकेडमी” मुम्बई ने दो चर्चित नाटकों “राजकुमारी जुलियाना” और “मेरा पति सलमान खान” का शानदार मंचन किया*
Entertainment
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मेधा साहित्यिक मंच” ने किया “कविता की एक शाम” का आयोजन हुआ,
Literature
*आज के समय मे हर किसी को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए : डॉ. विजेन्द्र शर्मा*
Health
कृष्ण-कृष्णा की प्रेमावस्था… (कुछ शास्त्रीय चरित्रों पर मुक्त विमर्श)!- यूरी बोतविन्किन
Literature
जवाहरलाल जलज की कविताएं
Literature
Aa

Lahak Digital

News for nation

0
Aa
  • Literature
  • Business
  • Politics
  • Entertainment
  • Science
  • Technology
  • International News
  • Media
Search
Have an existing account? Sign In
Follow US
  • Advertise
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Lahak Digital > Blog > Literature > विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’ की ग़ज़लें
Literature

विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’ की ग़ज़लें

admin
Last updated: 2023/07/31 at 4:57 PM
admin
Share
10 Min Read
SHARE

ग़ज़ल 1:-
बहुत दिलकश बड़े दिलदार हैं, पत्ते चिनारों के ,
किसी के इश्क़ में सरशार हैं, पत्ते चिनारों के ।

कई रंगों में खिलकर ये बहारों में चमकते हैं ,
फ़िज़ा माथे खिली दस्तार हैं , पत्ते चिनारों के ।

कभी सर्दी के मौसम में ठिठुरते हाथ मलते हैं ,
कभी जलते हुए रुख़सार हैं , पत्ते चिनारों के ।

मुहब्बत में थके युगलों को देते छाँव प्यारी-सी ,
जले दिल वालों को फटकार हैं, पत्ते चिनारों के ।

वनों ,नदियों , पहाड़ों , वादियों, झरनों से मिलकर तो ,
धरा का जादुई शृंगार हैं , पत्ते चिनारों के ।

कभी सावन की रातों में बिखरती चाँदनी छन -छन ,
सदा गाते मधुर मल्हार हैं , पत्ते चिनारों के ।

तटों पर झील के जब नृत्य-रत लहरों के संग झूमें ,
तो फिर अभिसार-रत मनुहार हैं,पत्ते चिनारों के ।

दहकती गर्मियों में रक्त रंजित कहकशाँ सारी ,
ख़ुदा के नूर का अवतार हैं , पत्ते चिनारों के ।

कहाँ फिर आप पायेंगे ‘शलभ’, मयख़्वार  इन जैसा ,
बहुत अद्भुत बड़े फ़नकार हैं , पत्ते चिनारों के ।

ग़ज़ल 2:-

वो कब तक इश्क़ की नाकाम हिजरत देखती रहती,
मुहब्बत किसलिए अपनी नदामत देखती रहती |

हुकूमत जब ज़रा सी बात पर लेने लगी बदले ,
तो जनता भी क्यों ये कड़वी हक़ीक़त देखती रहती ।

उन्होंने रास्ता आख़िर चुना दो हाथ करने का ,
ग़रीबी कब तलक उनकी ये वहशत देखती रहती ।

अदीबों के भी अंतर्मन में थी प्रतिशोध की ज्वाला
वो क्यूँ मजबूर – मुफ़लिस की ये ज़िल्लत देखती रहती ।

उसे पत्थर दिलों के बीच ‘क्यों-कर’ टूट जाना था ,
तो उल्फ़त किसलिए अपनी मलामत देखती रहती ।

सियासी ग़लतियों की तो सज़ा सदियाँ भुगतती हैं ,
वतन की ऐसी-तैसी क्या विरासत देखती रहती ।

निगहबानी में जिसकी सौ तरह फूलों को खिलना था ,
‘फ़िज़ा’ क्या ‘बाग़वाँ’ की ये सियासत देखती रहती ।

बड़े विध्वंस की दस्तक सुना दी पूरी दुनिया को ,
धरा कब तक ‘शलभ’ अपनी अज़ीयत देखती रहती ।

ग़ज़ल 3:-

कुछ मुहब्बत में काम तो आए ,
कितने इलज़ाम नाम तो आए ।

अनवरत हूँ सफ़र में सदियों से ,
कहीं मंज़िल, क़याम तो आए ।

ज़ख़्म अपने कुरेद डालूँगा ,
प्यार का कुछ इनाम तो आए ।

कुछ पज़ीराई हुस्न की भी हो,
इश्क़ में एहतराम तो आए ।

ख़ूब ले लूँ बलाएँ मैं उसकी ,
चाँदनी अपने बाम तो आए ।

तीर से चीर दो मेरा सीना ,
दर्दे दिल को ख़िराम तो आए ।

आज इलहाम ये ‘शलभ’ को हुआ ,
सब्र उसको तमाम तो आए ।

ग़ज़ल 4 :-

चाँद तो सर्द इक हक़ीक़त है ,
‘तेरे’ अहसास में ही जन्नत है ।

चाँद में तो लहू न दिल कोई ,
एक बेजान सी मुहब्बत है ।

रूप उसका है इक हक़ीक़त -सा ,
चाँद की बेनियाज़ फ़ितरत है ।

तेरी अज़मत तो चिरस्थायी-सी ,
चाँद में तो बला की हिजरत है ।

तेरी सूरत में रहती है सीरत ,
चाँद में ये कहाँ महारत है ।

घटता बढ़ता है चाँदनी का नूर ,
तेरी रंगत में बसती क़ुदरत है ।

चाँदनी से ‘शलभ’ को क्या है गरज ,
वो तो करता तेरी इबादत है।

ग़ज़ल 5:-

ऐसे न फिर किसी का यारो शिकार करना ,
मत दोस्ती को ऐसे तुम शर्मसार करना ।

हो जाए इश्क़ तुमको तो बेशुमार करना ,
हम जैसे ग़मज़दों को क्या तार-तार करना ।

कुछ हौसला बढ़ाना जब तेरे दर पे आएँ ,
नज़रें न फेर लेना मत दरकिनार करना ।

‘शीशे’ भी इस फ़िज़ा में बस झूठ बोलते हैं ,
मजबूरियों पे उनकी क्या रोज़गार करना ।

जो उड़ गये परिंदें कब घर को लौटते हैं ,
यादों में उनकी ख़ुद को क्यों अश्कबार करना ।

मैं राह देखता हूँ तेरे कफ़स में जानाँ ,
इतना भी क्यों है हमको अब बेक़रार करना ।

ख़ामोशियाँ ये तेरी नादाँ ‘शलभ’ न समझे ,
ग़ज़लों में अपनी उनको तुम आश्कार करना ।

ग़ज़ल 6:-

होता है जब कभी भी ये , बे-इख़्तियार दिल ,
बेहिस ! पुकारता उसे ये बेक़रार दिल ।

जलवानुमां हों जब कभी इसमें मोहब्बतें ,
होता है अपने आप में ही इश्तहार दिल ।

खाये जो चोट प्यार में , नाकाम जब रहे ,
अपने वजूद को ही करे , संगसार दिल ।

इस दिल की मेहरबानी पे क़ुर्बान जाइये ,
दुश्मन के ग़म में होता है, ये अश्कबार दिल ।

इस दिल के रास्तों पे न आये कोई कभी ,
करता है कुल जहां को सदा होशियार दिल ।

अब इक नदी तो इस की भी हो जायेगी कभी ,
जिसके लिए है आज भी उम्मीदवार दिल ।

जब चाँद की तरह ये तन्हा ही रह गया ,
तो दाग़दार सा हुआ है सोगवार दिल ।

रंजों में इश्क़ के ही सुकूँ ढूँढ़ता रहा ,
गलियों में उसकी दर- ब- दर ये ख़ाकसार दिल ।

अब तेरी रहमतों से ये सरशार है बहुत ,
नाज़ुक ‘शलभ’ का दोस्तो है ग़मगुसार दिल ।

ग़ज़ल 7:-

कुछ तो करो के तुमसे कोई बात कर सके,
कैसे तुम्हारे नाम ये जज़्बात कर सके।

अब इश्क़ में तकल्लुफ़ों से क्यूँ निबाह हो ,
तू भी तो अपने आप इनायात कर सके ।

रूठे खड़े पहाड़ फ़िज़ाएँ उदास हैं ,
स्वच्छंद उन के मन से मुलाक़ात कर सके।

सारे जहां में ज़िंदगी जब लौट आई तो ,
हम विष को पीके खुद को ही सुकरात कर सके।

ये ज़िंदगी है सिम्फ़नी, सुर ताल प्यार का ,
हम दर्द के सुरों को भी नग़मात कर सके।

नदियाँ डरी-डरी सीं समुन्दर भी सोच में,
जीवंत पहले जैसे ही हालात कर सके ।

इस आदमी के लोभ की कुछ हो दवा ‘शलभ’,
अपने ज़मीर से भी सवालात कर सके।

ग़ज़ल 8:-

लम्हा-लम्हा उदास है साथी ,
एक तिनका न पास है साथी ।

आदमी आदमी से डरता है ,
ये अनोखा ही त्रास है साथी ।

कैसे निर्वाण अब मिलेगा हमें ,
किसको इसका क़यास है साथी ।

अब तो ‘मिट्टी -बरान’ निश्चित है ,
अब न होशोहवास हैं साथी ।

इक ख़ुदा चाहिए इबादत को ,
हमको जिसकी तलाश है साथी ।

इस धरा का भविष्य क्या होगा ,
इस पे भी अब क़यास है साथी ।

हर तरफ़ छाई कितनी वीरानी ,
अब न कोई उजास1 है साथी ।

हम हैं मिट्टी के बर्तनों की तरह ,
आम कोई न ख़ास है साथी ।

कौन आये हमें बचाने को ,
अब किसी से न आस है साथी ।

सूर्य दिन में अकेले जलता है,
चाँद भी महव-ए-यास2 हैं साथी।

ग़ज़ल 9:-

इस ज़माने में तो कुछ दुष्कर नहीं है ,
हाँ , मगर उपलब्ध भी हँसकर नहीं है ।

भूख लालच वासना और प्रेम धोखे,
ज़िंदगी में इससे कुछ हटकर नहीं है ।

बेवफ़ा तो और हैं , बस हम हैं सच्चे ,
सोच इससे तो कोई बदतर नहीं है ।

इक धरा है एक जीवन, इक ‘उजाला,
उस जहाँ में एक भी दिनकर नहीं है ।

पेड़ पौधे जीव जंतु जल हवाएँ ,
इस धरा से और कुछ बेहतर नहीं है ।

एक जीवन है मिला तुमको धरा पर ,
कहकशाँ में कुछ भी श्रेयस्कर नहीं है ।

ग़ज़ल 10:-

मुफ़लिस का जीना भी दुष्कर ऐसा होता है ,
नर्म बिछौने में सोना तो सपना होता है।

आमजनों को वक़्त के विष को पीना होता है,
उनको तो हर काल में ही बस मरना होता है।

धर्म नहीं है परिंदों का यूँ , बैठना थक कर ,
हर हाल में ही पंछियों को उड़ना होता है ।

सरमायेदारों की होती है हर चाल ही टेढ़ी,
उनको तिजोरी में छुप कर ही रहना होता है।

अपनी आदत से फिर बैठे बरगद के अब उल्लू,
उनको रात के पहलू में अब सोना होता है।

करती हैं इसरार चाँद से किरनें तो लेकिन,
हरजाई को छुट्टी पर भी जाना होता है।

राजशाही , लोकतंत्र या हो तानाशाही ,
हरेक ‘व्यवस्था’ में मुफ़लिस को पिटना होता है ।

खून चूसते लोगों का , ले कर बग़ल में छुरी ,
राम नाम लाला को भइया जपना होता है

तितली से या गुल से ‘शलभ’ का क्या है लेना देना,
उसको शम्अ की पुरसिश में जलना होता है।

———-

डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता ‘शलभ’, दिल्ली

You Might Also Like

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मेधा साहित्यिक मंच” ने किया “कविता की एक शाम” का आयोजन हुआ,

कृष्ण-कृष्णा की प्रेमावस्था… (कुछ शास्त्रीय चरित्रों पर मुक्त विमर्श)!- यूरी बोतविन्किन

जवाहरलाल जलज की कविताएं

प्रज्ञा गुप्ता की कविताएं

जयराम सिंह गौर की कहानी -* कुक्कू का क्या होगा *

Sign Up For Daily Newsletter

Be keep up! Get the latest breaking news delivered straight to your inbox.
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our Terms of Use and acknowledge the data practices in our Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.
admin July 31, 2023
Share this Article
Facebook Twitter Copy Link Print
Share
Previous Article राकेश भारतीय की कहानी : “काम”
Next Article प्रधानमंत्री ने बिहार को दिया 2584 करोड़ का बड़ा तोहफा, 49 रेलवे स्टेशनों का होगा कायाकल्प
Leave a comment Leave a comment

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Stay Connected

235.3k Followers Like
69.1k Followers Follow
11.6k Followers Pin
56.4k Followers Follow
136k Subscribers Subscribe
4.4k Followers Follow
- Advertisement -
Ad imageAd image

Latest News

“वीकेएस.फिल्म एकेडमी” मुम्बई ने दो चर्चित नाटकों “राजकुमारी जुलियाना” और “मेरा पति सलमान खान” का शानदार मंचन किया*
Entertainment May 4, 2025
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मेधा साहित्यिक मंच” ने किया “कविता की एक शाम” का आयोजन हुआ,
Literature May 1, 2025
*आज के समय मे हर किसी को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना चाहिए : डॉ. विजेन्द्र शर्मा*
Health May 1, 2025
कृष्ण-कृष्णा की प्रेमावस्था… (कुछ शास्त्रीय चरित्रों पर मुक्त विमर्श)!- यूरी बोतविन्किन
Literature April 30, 2025
//

We influence 20 million users and is the number one business and technology news network on the planet

Sign Up for Our Newsletter

Subscribe to our newsletter to get our newest articles instantly!

[mc4wp_form id=”847″]

Follow US

©Lahak Digital | Designed By DGTroX Media

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Register Lost your password?