धर्म
(गनेश शंकर विधार्थी के लिए)
1.
धर्म की आम छवि
महानायक की थी
खलनायक की है
समय का सच यही
धरा कहती यही
गलत ही है सही
2.
धर्म खेलता खेल
मनुष्यता है फेल
मालूम न चलता
कौन -सी लाइन पर
राजनीति की रेल
सच के आगे जेल
3.
धर्म का विष
विषैला हम
विषधर कहो
मनुष्य नहीं
हमारा सच
बिल्कुल यही
4.
धर्म की धूम
दोषी हम-तुम
और न कोई
मानो हम-तुम
हम-तुम दुश्मन
इस भारत के
जिसमें जीते
दुश्मन – से हम
5.
धर्म का चेहरा -चरित्र
अधर्म वाला हो गया है
बेचारा भला आदमी
धरा पे बुरा हो गया है
समय के बोल- विचार
वही
जो भूत को लाया
वही हनुमान को भी
जो रात को लाया
वही इस राम को भी
जो भेड़िया लाया
वही भेड़ बनाया
राजनीति आज की
1
राजनीति में
मनुष्य नहीं
सांप – नेवला
लगता यही
चुनाव में भी
संसद में भी
2.
राजनीति में
धूर्त ही आते
दीखता यही
मूर्ख शायद ही
सामने यही
कुछ और तो नहीं
3.
राजनीति
इज्ज़त की
रही नहीं
बिन देखे
कही नहीं
सत्य यही
4.
राजनीति
गाली से
गाली तक
दिखा -लिखा
अमृत काल
अर्थ यही
5
राजनीति जलेबी
रसगुल्ला नहीं है
जनता बोलती है
सुबह – शाम यही
6.
राजनीति से
लगता यही
राम खिलौना
हनुमान भी
सामने यही
वह खेलती
हर चुनाव में
जनता की आवाज़
सेंगोल
सेंगोल पर बोल
बोल भारत ,बोल
संसद में सेंगोल
औचित्य क्या,बोल
भारत मूक नहीं
शिक्षित भारत बोल
1947 नहीं, 2023
बोल भारत, बोल
2.
हम पिछे जा रहे
या सिंचे जा रहे
या खींचे जा रहे
या निचे जा रहे
सेंगोल प्रश्न है
उत्तर बिल्कुल नहीं
यदि
झूठ बोलना
सीखना धर्म
यदि सत्ता है
आपका कर्म
संसद
लोकतंत्र का मंदिर नहीं
जमहूरियत की मस्जिद नहीं
डेमोक्रेसी का चर्च नहीं
सत्ता -विपक्ष की बैठकी
जहां संविधान जीता है
आपात या आफत काल हो
शासक
सेवक कहते
शासन करते
शासक हमरे
सेवक करते
इनको -उसको
सिवाय खुद को
शासक हमरे
चलित साहित्य
1. भाजपा
एक वक्ता
बाकी प्रवक्ता
2. कांग्रेस
एक परिवार
या दरबार
3. लोकतंत्र
बहु विचार
कम विकार
4. एकतंत्र
एक विचार
बहु विकार
5. लोकशाही
लोकशाही का अर्थ
हाथी के दांत नहीं
नागरिक की नाक भी
6. इज्जत
सच मत बोलो
इज्ज़त जाती है
7. लज्जा
लज्जा की चिता
जल रही है
श्मशान में
8. बृजभूषण
कितने बृजभूषण !
सत्ता के आभूषण
9. बलात्कार
बलात्कार
स्त्री का अपमान
पुरुष की शान
रिंग मास्टर
राजनीति का
रिंग मास्टर
सनातन धर्म
इस्लाम नहीं
ईसाई नहीं
बोलता कर्म
धरा पर यही
कानून
चुनाव में कहो
बजरंग बली
हरगिज न बोलो
कहीं पर अली
जेल जाओगे
कानून यही
सपूत
गांधी कपूत
गोड्स सपूत
बुदबुदात है
हिंदूत्व पूत
यह नया भारत
कहता सपूत
जनवचनी कविताएं
अंतर
मोदी, राहुल में
मौलिक अंतर है
मोदी मूर्ख नहीं
राहुल धूर्त नहीं
अयोध्या
अयोध्या
मतलब है
राजनीति
धर्म नहीं
कर्म नहीं
शर्म यही
धर्म
धर्म की बात
धूर्त करते
या तो करते
सदैव मूर्ख
धर्म का सत्य
धरा पर यही
साहित्य
साहित्य जीता
शासित के संग
दिखता बनाम
शासक के रंग
खोलता रहता
शासक के ढंग
देश
देश हमारा
सरकार का नहीं
सचाई यही
कहते चलो यही
गलत को देख
करते चलो सही
काल
कहने का काल
कवि का अकाल
कविता है मौन
कहेगा कौन
धरा का सवाल
बोलो न काल
एक नज़र इधर भी
सियासत
मुहब्बत की बेटी दावत
नफ़रत की बेटी अदावत
घर -घर आकर बता जाती
हरेक की नानी सियासत
पता
पति पता था
पत्नी पता है
विकास यही
हर को पता है
पति मौन है
मानो खता है
सोच
सनातनी सोच
मानवीय नहीं
वैज्ञानिक सोच
मानवीय सोच
शिक्षा बोलती
हरेक से ही यही
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश
उत्तर की ओर
बिल्कुल नहीं है
चरित्र बोलता
मानो या नहीं
पर जानो सही
नाक
नेहरू की नाक
छू सको तो छूना
निर्माण की थी
विज्ञापन की नहीं
स्वदेश
देश था, द्वेष है
द्वेष ही देश है
द्वेषी कहते हैं
यही स्वदेश है
— रत्नेश कुमार
गुवाहाटी
मो: 8876690550