के. विक्रम राव Twitter ID: Kvikram Rao
गत तीन दशकों में अपनी सातवीं अमेरिकी यात्रा पर नरेंद्र मोदी को पिछली (29-30 सितंबर 2014) वाली सर्वाधिक यादगार रही होगी। दशहरा का दिन था। नवरात्रि का सप्ताह। तब यह देवीभक्त गुजराती उपवास पर था। वाशिंगटन में केवल जल पीता रहा। मेजबान बराक हुसैन ओबामा चकित थे। बिना गोश्त खाये, कोई राजनेता उन्हें तब तक नहीं मिला था। अतः अचंभा अधिक था। गहन भी, इसलिए कि मोदी अन्न खाये बिना रहे। अब तक भारत के नौ प्रधानमंत्री अमेरिका जा चुके हैं। मोदी के पूर्व उन्हीं के गुजराती भाई मोरारजी देसाई (24-28 मार्च 1979) थे। पर सादगी से रहे। तेलुगू विप्र पीवी नरसिम्हा राव तो शुद्ध शाकाहारी थे। शेष सभी सहज अतिथि थे। जवाहरलाल नेहरू और उनकी पुत्री तथा पौत्र को तो गौ मांस से कतई परहेज कभी नहीं रहा था। अटल बिहारी वाजपेई 1996, फिर 2004 में दुबारा गए। उनकी खास पसंद थी जायेकेदार भुना हुआ उषाकर जो बांग देता है। सर्वप्रथम 1994 में एक युवा भाजपा राजनेता के रूप में मोदी अमेरिका गए थे। अमेरिकी विदेश विभाग और अमेरिकी युवा राजनीतिक नेताओं की परिषद अन्य देशों के युवा नेताओं की मानसिकता तथा चिंतन समझने के लिए वहां के नेताओं को बुलाती है। इसी क्रम में अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलीटिकल लीडर्स के कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी (तबके बीजेपी के युवा नेता) को बुलाया गया था। उस दौरान पीएम मोदी ने इंडियन पॉलिटिक्स, फॉरेन रिलेशंस पर विस्तार से बात की थी। तब उनके साथ थे तेलंगाना के नेता जी. किशन रेड्डी जो आज केंद्र में संस्कृति और पर्यटन मंत्री हैं।
बड़ा दुखद रहा मोदी के लिए 2002 में जब राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने उन्हें वीजा देने से मना कर दिया था। उस साल गुजरात में दंगे हुए थे और मोदी ही मुख्यमंत्री थे। बराक ओबामा के समय तीन बार, फिर डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल में दो बार (26 जून 2017 और सितंबर 2019 में) मोदी गए थे। ट्रंप तो अहमदाबाद भी आए थे। मोटेरा क्रिकेट स्टेडियम में उनकी सभा हुई थी।
मगर इस सप्ताह की अमेरिकी यात्रा मोदी की विश्व पटल की नजर में अत्यंत महत्वपूर्ण रही। हालांकि एक खबर आई थी कि बराक ओबामा ने मोदी से मांग की कि राष्ट्रपति जो बाइडेन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बैठक के दौरान बहुसंख्यक हिंदू भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाना चाहिए। “यदि आप भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत अलग-थलग पड़ सकता है”, कहा ओबामा ने। मोदी की यात्रा पर सोनिया-कांग्रेस की प्रवक्ता ने ट्विटर पर यह खबर भेजी जिसे बराक ओबामा ने एक न्यूज़ चैनल से यह कहा। इस पर भाजपाई का जवाब हो सकता है कि राहुल गांधी के बारे में बराक ओबामा ने अपने संस्मरण “ए प्रामिस्ड लैंड” (17 नवंबर 2020) में क्या लिखा था ? “एक नर्वस, अपरिपक्व गुण है, जैसे कि वे एक छात्र थे, जिन्होंने पाठ्यक्रम का काम किया था और शिक्षक को प्रभावित करने के लिए उत्सुक थे, लेकिन अंदर ही अंदर इस विषय में महारत हासिल करने की योग्यता या जुनून की कमी थी।”
मोदी की अमेरिका की प्रथम यात्रा यूं भी दिलचस्प थी। वे सितंबर 1993, में अमेरिका पहुंचे थे। आरएसएस प्रचारक के रूप में मोदी और मुरली मनोहर जोशी स्वामी विवेकानंद की 100वीं जन्मजयंती अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने शिकागो गए थे। यह मोदी की पांच-दिवसीय अमेरिका यात्रा थी। जब शिकागो पहुंचे, तब उनके पास 10 बाय 10 इंच का एक छोटा सा बैग था, जिसमें सिर्फ दो जोड़ी कपड़े रखे थे। कपड़ों के अलावा बैग में बस दैनंदिन का कुछ और बहुत थोड़ा सा सामान भर था। मोदी ने शिकागो में चार दिन गुजारे थे।
मोदी की अमरीका यात्रा का विश्लेषण हो। अब हिंदूवादी नेता ईसाई-बहुल अमेरिका जाये और वहां भगुवा का प्रचार न करें ? ऐसा तो मुमकिन नही है। इसीलिए मोदी ने राष्ट्रपति की पत्नी श्रीमती जिल बाइडेन को साढ़े सात कैरेट का हीरा “कश्मीर के कोर कलमदारी” वाला भेंट दिया। फिर मैसूर का मशहूर चंद्रमा तथा मोर, साथ में गणेश की प्रतिमा भी। वक्त की नजाकत और महत्त्व को भांपकर मोदी ने याद किया कि बाइडेन गत 20 नवंबर को 80 वर्ष के हो गए हैं। हिंदू आस्था में इसे सताभिषेकम कहते हैं, जब व्यक्ति अस्सी वसंत देख लेता है। मकसद है कि वह जीवन, स्वास्थ्य और ऊर्जा से संपूर्ण रहा होगा। अर्थात व्यक्ति ने एक हजार पूर्णमासी देखी हो। लक्ष्मी, आयुष, गणपति, अमृत, मृत्युंजय और धन्वंतरि का आशीर्वाद लें।
राष्ट्रपति बाइडेन को मोदी ने दस भेंट (दान) दिए क्योंकि वे “दृष्ट सहस्त्रचंद्रः” हो गए हैं। इसमें पहला है : गोदान के रूप में चांदी का नारियल। फिर भूदान के रूप में मैसूर का चंदन। तिलदान में तमिलनाडु की शीशम की लकड़ी। राजस्थान से लाया गया स्वर्ण हिरण्यदान कहलाता है। पंजाब से शुद्ध घी जिसे धृतदान कहते हैं। अब आया वस्त्रदान अर्थात झारखंड का रेशम। उत्तराखंड के लंबे आकार के चावल (धानदान)। महाराष्ट्र से ईख (गुड़दान)। राजस्थान की चांदी का पात्र रोप्यदान और अंत में गुजरात का नमक (लवणदान)। बाइडेन अमेरिका राष्ट्रपति का चुनाव फिर लड़ने वाले हैं। अतः यह सब शुभ लक्षण हैं। स्वयं बाइडेन ने मोदी को अमेरिका कवि रॉबर्ट फ्रास्ट की पुस्तक भेंट की। इसी कवि की मशहूर पंक्ति थी : “चिरनिद्रा में जाने के पूर्व मुझे कई मीलों का सफर तय करना है।” यह बड़ा सांकेतिक है मोदी के लिए जो अभी 73 वर्ष के ही हैं। अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव का सामना कर रहे हैं। अर्थात मोदी और बाइडेन दोनों नए मतदान की तैयारी में हैं। एक दूसरे के लिए शुभाकांक्षायें तो चाहिए ही।
K Vikram Rao
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बाइडेन-मोदी : सांकेतिक भेंट ! दोनों 2024 में प्रत्याशी रहेंगे !! : के. विक्रम राव
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