बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज 20 जून को तबियत खराब के कारण तमिलनाडु नहीं जा सके। उनकी गैर मौजूदगी में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और मंत्री संजय झा तमिलनाडु के लिए रवाना हुए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह पूर्व प्रस्तावित कार्यक्रम था। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बुलावे पर नीतीश कुमार जाने वाले थे। पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की जयंती पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भी शामिल होना था। साथ इस यात्रा में नीतीश कुमार आगामी 23 जून को पटना में आयोजित विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री स्टालिन से अनुरोध भी करते। हालांकि यह पहले से तय माना जा रहा था कि 23 जून की बैठक में स्टालिन शामिल होंगे जो कि 12 जून की रद्द बैठक में शामिल होने की उम्मीद न के बराबर थी। 12 जून की बैठक को रद्द करने के पीछे राहुल गाँधी की विदेश यात्रा और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को किसी अन्य कार्यक्रम में जाने की बाध्यता थी। इसके बाद 12 जून की बैठक आगे कर 23 जून की गयी, जिसमें 18 दलों के शामिल होने की बात कही जा रही है।
नीतीश कुमार इसलिए भी तमिलनाडु जाना चाहते थे, क्योंकि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने पहले ही विपक्षी बैठक से दूरी बना ली है। कर्नाटक के कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसलिए भी दूर रहेंगे क्योंकि पार्टी के आलाकमान शिरकत करेंगे। यही हाल केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के साथ भी है कि सीपीआई एम के राष्ट्रीय नेता शामिल होंगे। नीतीश कुमार की चिंता यह है कि यदि दक्षिण के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे तो कहा जाएगा कि विपक्षी एकता मुहिम उत्तर भारतीय होकर सिमट गयी और राष्ट्रीय स्तर की नहीं हो पाई।
23 जून की बैठक से नीतीश कुमार को काफी उम्मीद है क्योंकि वे खुद को पीएम मोदी के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खुद को देख रहे हैं। हालांकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पार्टी कार्यकर्ताओं को “हमारा प्रधानमंत्री कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो,” आदि स्लोगन, नारेबाजी लगाने से मना कर दिया है ताकि विपक्षी एकता पर कोई असर नहीं पड़े। अब देखना है कि 23 जून की बैठक के बाद नीतीश कुमार का कद बढ़ता है या घटता है।