हिंदी भवन भोपाल के महादेवी वर्मा सभाकक्ष में रामकथा पर आधारित गोवर्धन यादव द्वारा लिखित उपन्यास “वनगमन” तथा ” दण्डकारण्य की ओर” पर पुस्तक चर्चा.
दिनांक 12-06-2023
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उपन्यास “वनगमन” तथा ’दण्डकारण्य की ओर” पर पुस्तक चर्चा, हिन्दी भवन भोपाल एवं हिन्दी भवन न्यास द्वारा महादेवी वर्मा सभागार में दिनांक 12-06-2023 को मान.श्री रघुननदन शर्मा (पूर्व सांसद, उपाध्यक्ष हिन्दी भवन एवं कार्य.अध्यक्ष मानस भवन भोपाल) की अध्यक्षता में एवं श्री मनोज श्रीवास्तव ( पूर्व आई.ए.एस.) एवं (प्रधान संपादक “अक्षरा”), डा. राजेश श्रीवास्तव (निदेशक, रामायण केन्द्र भोपाल, मुख्य कार्यपालन आधिकारी, म.प्र.तीर्थ एवं मेला प्राधिकरण, अध्यात्म मंत्रालय. म.प्र,शासन), तथा डा. प्रो.सुरेन्द्र बिहारी गोस्वामी ( कार्य. मंत्री-संचालक हिंदी भवन भोपाल) तथा हिंदी भवन के मंत्री-संचालक दादा श्री कैलाशचन्द्र पंतजी की गरिमामय उपस्थिति में लेखक गोवर्धन यादव की सद्य प्रकाशित पुस्तकें-” पातालकोट- जहाँ धरती बांचती है आसमानी प्रेमपत्र ( यात्रा वृत्तांत) तथा कहानी संग्रह- “खुशियों वाली नदी” का विमोचन किया गया.
तदनन्तर हिंदी भवन के मंत्री-संचालक मान.श्री कैलाशचंद्र पंत जी मुझे शाल-श्रीफ़ल और स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित किया. मुझे यह कहते हुए संकोच हो रहा है कि पूर्व में मुझे देश-प्रदेश से करीब पच्चीस से अधिक साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है, लेकिन अपनी मातृ-संस्था से सम्मानित होना गौरव का विषय है. हिंदी भवन के सभी माननीय सदस्यों को मेरा आत्मीय धन्यवाद.आभार.
तदनन्तर पुस्तक-चर्चा में डा.राजेश श्रीवास्तवजी ने अपने उद्बोधन में कहा-” यदि हम श्रीराम के जीवन का आकलन करें तो चौदह वर्ष का वनवास जो उन्होंने झेला है, वही उनके संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करता है. लेखक ने इसे अपनी कल्पनाओं के माध्यम से एक नए रुप में उकेरा है”.
मान.श्री मनोज श्रीवास्तवजी ने कहा-” श्रीराम ने वंश परम्परा विरासत को नहीं अपनाते हुए अपने आपको स्वयं ढाला. यदि वे अपनी सीमाओं की सुविधा और सरलता में आबद्ध होते तो उनका पुरुषार्थ सिद्ध होता, न ही भगवत्ता.” आपने आगे बोलते हुए कहा-“हरि अनंत हरि कथा अनंता. इसलिए राम की कथा जब-जब भी की जाती है, अपने आप में सनातन को स्थापित-सी करती है. हर कथाकार अपने लेखकीय स्वतंत्रता के अनुरूप पात्रों को जीता है.” ( मान. मनोज श्रीवास्तव ने सुन्दरकाण्ड पर अठारह वृहद ग्रंथ लिखे हैं) कहा- “माता कैकई के एक भिन्न स्वरूप का जो वर्णन श्री गोवर्धन यादव ने अपने उपन्यास “वनगमन” में किया है, वह अद्भुत है” आगे आपने कहा-” वाल्मीकि रामायण में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि सूर्पणखा के नाक-कान काटे गए. कामभाव से पीढ़ित होकर वह राम के पास आती है और उनसे विवाह करने को कहती है, जब प्रभु श्रीरामजी ने एक पत्नी-व्रत की बात कह कर उसका प्रणय- निवेदन अस्वीकार कर दिया.तो उसने इसमें अपना अपमान समझा. राम से प्रतिशोध लेने के लिए वह रावण से सीता की सुंदरता का बखान करते हुए उसे छल-बल से अपहरण करने के लिए उकसाती है. दरअसल वह अपने भाई रावण से प्रतिशोध लेना चाहती थी क्योंकि उसने उसके पति विद्युतजिव्ह की निर्मम हत्या कर दी थी”. आपने अनेक कई प्रसंगों की चर्चा करते हुए बतलाया कि वाल्मिकी जी ने उत्तरकाण्ड लिखा ही नहीं है, इसे दुर्भावनावश बाद में जोड़ दिया गया है. आपने लक्ष्मण रेखा पर अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि इसका उल्लेख न तो वाल्मिकी रामायण में है और न ही तुलसीकृत रामचरित मानस में है. दक्षिण की सबसे लोकप्रिय कम्ब रामायण में रावण तो सीताजी सहित पूरे आश्रम को ही उठाकर ले जाते हुए बतलाया है. वहीं बंगाल की कृत्तिवास रामायण में तंत्र-मंत्र वाले प्रभाव का उपयोग करते हुए लक्ष्मण रेखा होने का उल्लेख मिलता है.”
अध्यक्षीय उद्बोधन में मानस मर्मज्ञ श्री रघुनन्दन शर्माजी ने दोनों उपन्यास “वनगमन” तथा “दण्डकारण्य़ की ओर” पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा-” इन दो उपन्यासों की भाषा शैली सरल, सहज और बोधगम्य है. लेखक ने उपन्यास लिखते हुए भाषा की महत्ता को ध्यान में रखते हुए ऐसे शब्दों को प्रयोग में नहीं लाया, जो हिंदी से इतर हो”.आपने किताबों की विषयवस्तु को एकदम नया बतलाते हुए लेखक की भूरि-भूरि सराहना करते हुए कहा-“. राम कथा हर भारतीय के दिल में बसी है और उससे सब परिचित है, लेकिन इन दोनो उपन्यास में जो घटनाक्रम, पल-प्रतिपल घट रहा होता है और रामकथा के पात्रों के मन में जो विचार चल रहे होते हैं, उसका विवरण अद्भुत है । लेखक ने परकाया प्रवेश करते हुए कथानक को लिखा है, जिसे पढ़ते हुए लगता है कि प्रसंग चलचित्र की तरह आँखों के सामने चलायमान हो रहे है. लेखक ने मामा मारीच और रावण के बीच चल रही वार्ता में मारीच से मुख से रामजी की अपराजेय शक्तियों के बारे में तथा सनातान धर्म की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहलवाया है- “सत्यं ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम अप्रियम / प्रियं च नानूतम ब्रूयात, एष धर्मः सनातन.” मैं एकदम सच कहा रहा हूँ. तुम अपने अहंकार में डूबे होने के कारण राम को बिलकुल भी नहीं जानते, वे पराक्रम और गुणॊं में बहुत बड़े तथा इन्द्र और वरूण के समान हैं.अतः उनसे बैर मत पालो.यदि तुमने सीता के अपहरण करने की जिद नहीं छोड़ी, तो समूची लंका पर बड़ा संकट आ जाएगा. यदि ऐसा हुआ तो तुम जैसे स्वेच्छाचारी सहित लंकापुरी के समस्त राक्षस एक साथ नष्ट हो जायेंगे”. आपने अपने उद्बोधन में माता कैकेई जी की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा-“महाराज दशरथ के द्वारा राम के राज्याभिषेक के लिये गए निर्णय को, बाद में गुरु वशिष्ठ जी की स्वीकृति के बाद की गई घोषणा को, माता कैकेई ने दो वर मांग कर, पूरे अयोध्या में भूचाल ला दिया और रात्रि की समस्त कालिमा को अपने चेहरे पर मल लिया और सदा-सदा के लिए कलंकित हो गय़ीं. यदि वे ऐसा नहीं करतीं तो राम केवल अयोध्या की सीमा के भीतर कैद होकर रह जाते. लेकिन माता कैकेई की दूरदर्शिता ने रामजी को आर्यावृत के घरों-घरों तक पहुँचा दिया.. अपने लेखकीय कौशल से लेखक गोवर्धन यादव ने माता कैकेई पर लगने वाले सभी लांछनों से उन्हें मुक्त करने का सराहनीय कार्य किया है.”
कार्यक्रम के अंत में प्रो. सुरेन्द्र बिकारी गोस्वामी जी.के द्वारा सार समीक्षा करते हुए उपस्थित साहित्यकारों एवं प्रबुद्ध अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया. कार्यक्रम का संचालन- साहित्यकार श्री गोकुल सोनी द्वारा किया गया. इस गौरवशाली कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मानस प्रेमी साहित्यकार तथा यादवजी का पूरा परिवार उपस्थित था.